लौटना –एक

वापसी में मैंने कुछ भी नहीं छोड़ा
न रास्ते
न पेड़
न उनकी छायाएं
न मेरे मन में उनकी गंध
न भीगी हुई हरी धूपीली दोपहर के अधूरे अवसान का अकस्मात्

मैंने केवल जगह छोड़ी
केवल एक उदास पानी की नदी पर बना पुल छोड़ा
लौटते हुए

पानी छूट गया हो तो छूट गया हो
उदासी नही
काल की टिक टिक में अचानक उठा उफान नहीं
अपनी बेरुखी में शहर चलता हो तो चलता हो
उसकी चाल का एक स्क्रीन शाट
अब भी मेरे सामानों में सिकुड़ा हुआ पड़ा होगा

एक बेतरतीब में चीज़ों को पड़े रहने दो
तो वो खुद ब खुद नहीं खुलती
–उकता कर
समय देती हैं
समय मांगती हैं

तैयार करती हैं अगले सफ़र के लिए
एक तरतीब
और रख देती हैं जेब में

जैसे कोई पुरजा लिखा हुआ
हिदायतशुदा
कि आदमी अकेले न लौटे

Published by Hriday Tarangini

कविता ,एक निजी तौर पर जैसे उद्घाटित करती है मुझे ,बस अपना वही कोना

One thought on “लौटना –एक

  1. पानी छूट गया हो तो छूट गया हो

    उदासी नही…. क्या उम्दा अहसास है

    Liked by 1 person

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started