वसंत,मन के रंग का होता है
लेकिन मन का कोई रंग नहीं होता !
वह बेरंग भी नहीं होता,धूसर भी नहीं
वह हमेशा इंतजार के रंग में देखता रहता है रास्ता
जिस किसी रंग में आओ वह तुम्हें
आने दे
मिट्टी की तरह
जो जाने कहाँ से लाती है
पौधों का हरापन,
बोगनवेलिया और दसबजिया के अलग अलग रंग.
मैं तुम्हें देखूं जेठ में तो वसंत सी लगती हो तुम
इस बात पर टोका नहीं जा सकता कि
यह वाजिब नहीं ,इस मौसम ,इस तरह कैसे
लेकिन रंगों को लेकर इतनी बेफ़िक्री से बात करना ठीक नहीं
हो सकता है यह एक गैर जिम्मेदार तरीका हो
और हम समझ न पा रहे हों
जिन्हें इन बातों की सबसे ज्यादा चिन्ता है
वे हमेशा उन रंगों से रंज माने बैठे रहते हैं
जो दुनिया को बेतकल्लुफ़ी से
हंसी और मोहब्बत के नाम
किये देना चाहते हैं.
देखो उन लापरवाह लोगों को
अपने अपने रंगों को लेकर मची तनातनी के बीच
वे सो रहे हैं
इन्द्रधनुष लिपटाए
वसंत के सपनों में बड़बड़ाते
प्रेमिकाओं के नाम.
उन्हें उस तटस्थता की हिदायत शायद याद भी न हो
मुमकिन है
आप उन्हें जगाएँ-हिलाएँ
तो नींद से उठें और कहें
ये क्या ही रंग चढ़ा है तुम पर.
और उन्हें समझा पाना कतई सम्भव न हो कि
हम उन पर चढ़ा रंग उतारने के लिए भेजे गए हैं
सिर्फ वसंत के दिनों में हम कुछ नहीं बोल पाएन्गे
वह मीठी चासनी की तरह
हर ओर से चिपक कर जकड लेगा
हम पसीने पसीने हो जाएंगे ,लेकिन वसंत के फूलों की खुशबू से भरे हुए .
सोचेंगे पंखा चला लें लेकिन भय खाएंगे
उतरती हुई सर्दी में उलझ जाने से
वसंत का बुखार चैत तक
हमारे फेंफडों को जकड़े रखेगा.
बेहतर है जिस तरह उतर रहा है
वसंत मन में और मन वसंत में
चाहे तुम उसे सरसों के फूलों सा पीले रंग का मानते हो
या चने की झिन्गरी सा हरा
चाहे तुम झरते हुए आकाश की नमी को
अपनी नसों में महसूस कर पा रहे हो या नहीं
इस कुम्हलायी धूप में—
हर रंग की तरफ फिर से देखो
तपने दो वसंत को प्रेम के तन में
धू धू जलने दो उसे मन में लाल पीला
तुम सोचो उन लोगों के बारे में
जिनके चेहरों से उतर गए हैं रंग
रचो एक मीठा षडयंत्र
कि वसंत के जाने जाने तक
कौन कौन से रंग मल डालोगे उनके गालों पर
वसंत इस बात का बिलकुल बुरा नहीं मानेगा
कि कौन कौन भीग गया ,कौन कौन गीला हुआ
किसे कोफ़्त हुयी ,किसके सफ़ेद कपडे किसी काम के नहीं रहे .